Wednesday 10 October 2012

गीत नवांतर


गीत नवांतर
गीत नवांतर मंे देश के बारह प्रतिनिधि गीतकारों की गीत रचनायें संकलित हैं,जोकि पूर्णतः नवगीतकार के रूप में जाने पहचाने जाते रहे हैं, गीत यात्रा में नए कथ्य, नई भाषा शैली, नए बिम्ब और गीत की लयात्मकता को बरकरार रखते हुए जिस नवछंद विधान की परिपाटी के प्रचलन पर नवगीत की बुनियाद रखी गई थी उसको अंगीकार करते हुए इसके प्रकाशन के पीछे सम्पादक प्रकाशक मधुकर गौड़ का मूल उद्धेश्य रहा है,कि ‘‘गीत नवगीत के रूप में फैला विवाद समाप्त हो’’ इस बात को उनके इस कथन से भी समझा जा सकता है,कि ‘‘गीत मेें जो नया अन्तर आया है वह गीत का नवांतर ही तो है अतः हम इसे गीत का नवांतर कहना अधिक उपयुक्त समझते हैं, अर्थात नवगीत गीत से हटकर या गीत से अलग कोई विधा या शैली नहीं है. उनके अभिमत में आजकल नवगीत के नाम से लिखे जा रहे गीत शब्दों की दुरुहता के साथ लयहीनता का शिकार हो रहे हैं परिणामतः वह गीत के विपरीत नई कविता के कहीं अधिक निकट हंै. पर गीत नवांतर के अन्तर्गत वहीं नवगीत प्रस्तुत किए गए हैं जो इस धारणा से परे गीत को शिखर पर स्थापित करने की सामथ्र्य रखते हैं इस दृष्टि से मधुकर गौड़ का श्रम अभिनंदनीय है यों भी गीत विधा के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण सदैव अंसदिग्ध हीे रही हैै.
फिर भी हिन्दी साहित्य में इस संग्रह के सामने आने से कुछ सवाल उठते हैं, जिनसे बचा नहीं जा सकता. क्या गीत नवांतर-गीत या नवगीत का पर्यायवाची है या अधुनातन नवगीतों के ढेर में से चुने हुए उच्चकोटि के नवगीतों की नई संज्ञा है’’ क्या गीत  नवांतर कह देने भर से गीत पर हो रही अस्थिरता की चोंटे समाप्त हो जायेंगी ? फिर भी महत्वपूर्ण और रेखांकित करने योग्य तथ्य यह है,कि संकलित सभी रचनाकारों ने पूर्णतः या आंशिक रूप से प्रकाशक सम्पादक के स्वर से अपनी सहमति दर्ज करायी है, यह सभी रचनाकार आने वाले समय में इस पर कायम रहेंगे यह भविष्य के गर्भ में है. खैर ये बातें ऐसी हैं, जोकि इस संग्रह की रचनाओं से जुड़ी हुई नहीं है. मूल प्रश्न यह है,कि गीत नवांतर में संकलित रचनायें गीत की इस नवोन्मेषी दृष्टि के कितने करीब हैं. इस      आधार पर सम्पादक द्वारा न सिर्फ रचनाकार अपितु रचनाओं का चयन भी सूझबूझ भरा है.
अधिकांश गीतों के मुखड़ें और अंतरे ऐसे हैं जो सिर चढ़कर बोलते हैं और जन जीवन में लोकोक्ति का रूप लेने की सामथ्र्य रखते हैं,
हम जीवन के महाकाव्य हैं
केवल छंद प्रसंग नहीं हैं -देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’
चल नहीं पाये
समय की
बांह में हम बांह डाले     -विद्यानन्दन राजीव
भीलों ने बांट लिये वन
राजा को ख़बर तक नहीं  -श्री कृष्ण तिवारी
क्या शिकवे
क्या करें गिले
जब मिले-बहेलिये मिले          -मधुकर गौड़
अपने भीतर आग भरो कुछ
जिससे यह मुद्रा तो बदले    -यशमालवीय

गीत की अस्मिता और लयबद्धता के साथ लोक जीवन से गहरा जुड़ाव और सामयिक यथार्थ की अभिव्यक्ति संकलित रचनाओं की विशेषता है. हिन्दी कविता में गीत को पुनः शिखर पर ले जाने की अभिलाषा और सार्थक चेष्टा के लिये सम्पादक का यह श्रम सार्थक भी है और अनुकरणीय भी.
गीत नवांतर/सं.मधुकर गौड़/प्रथम संस्करण मई 2003/मू. 30रू/ मुम्बई

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