Wednesday 10 October 2012

एक दुष्यंत और.....


एक दुष्यंत और.....

एक दुष्यंत और..............डाॅ. रमेश कटारिया पारस  द्वारा संपादित काव्य संग्रह है जिसमें 140 रचनाकारों की विभिन्न विधाओं यथा-गीत, ग़ज़ल एवं छंदमुक्त कवितायें संकलित है यूं तो कविता जीवन और आम आदमी के दुखदर्द से सरोकार रखती है, किन्तु इन दिनों आम आदमी का खुद कविता से कोई सरोकार नहीं है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया आदमी पर इतना हावी हो चुका है कि साहित्यिक पुस्तकों से उसका कोई संपर्क नहीं रहा फिर भी समाज और वर्तमान जीवन के प्रति चिंतित रचनाकार अभी भी अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति सचेत हैं और अपने स्तर पर इसके लिये प्रयास कर रहे हैं. डाॅ. रमेश कटारिया भी उन्हीं लगनशील रचनाकारों में से एक हैं. वह पिछले कई वर्षाें से न सिर्फ नए रचनाकरों को प्रकाशन का एक मंच मुहैया करा रहे हैं अपितु समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी कर रहे हैं यह प्रकाशन भी उनके इस उपक्रम की एक कड़ी है.
इसमें सम्मलित ग़ज़ल, गीत, कविताओं में वैयक्तित्व अनुभूतियां भी हैं और सामाजिक समस्याओं के प्रति उनकी चिंताओं अनुभवों का इज़हार भी. इस संग्रह की एक विशेषता यह भी है कि इसमें तीन पीढि़यों के नये पुराने रचनाकार एक साथ उपस्थित हैं. इनकी रचनाओं में पीढि़यों के अंतराल और उनके सोच को आसानी से समझा जा सकता है.
चूंकि वर्तमान साहित्य के प्रति न राष्ट्रीय समाचार पत्रों में जगह है न राष्ट्रीय पत्रिकाओं में, राजनीति और राजनीतिक समाचार उनकी पहली प्राथमिकता है. इन परिस्थितियों में साहित्यिक पत्रिकायें और सहयोगी काव्य संग्रह ही विकल्प रूप में शेष है. इस दृष्टि में रमेश कटारिया का यह संग्रह प्रशंसनीय है. यद्यपि वर्तमान युग में साहित्यिक पत्रिकायें या कविता संग्रह खरीदकर पढ़ने की प्रथा नहीं है फिर भी इस संग्रह में संकलित रचनाओं के आधार पर पाठकों से यही अनुशंसा करना चाहूंगा कि वह इसे खरीदकर पढें और प्रकाशक संस्था व रचनाकारों को मनोबल को सुदृढ़ करें.
एक दुष्यंत और/सं. डाॅ. रमेश कटारिया पारस/प्र.सं. 2009/मू 150रू.

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