Wednesday 10 October 2012

‘‘रही रदीफ़ सी’’


‘‘रही रदीफ़ सी’’ श्रीमती सरोज व्यास का पहला ग़़ज़ल संग्रह है. इसमें उनकी 101 ग़ज़लें संकलित है. इस ग़ज़लों में उनके जीवन के विविध खट्टे-मीठे अनुभव हैं जो कि शब्दों की तलाश करते हुए अशआर के रूप में सामने आये हैं. ‘‘रही रदीफ़ सी’’ शीर्षक कुछ भ्रम पैदा करता है. उन्होंने यह शीर्षक अपनी जि़न्दगी/अपनी शायरी/या ग़ज़ल विधा/ या ग़ज़ल के उस एक शेर के कारण लिया है जिसमें यह शब्द समूह व्यक्त हुआ है विचारणीय है. निःसंदेह यह उनके ग़ज़ल संग्रह का सर्वश्रेष्ठ शेर है-
ये है मौसमों का कोई असर, या ग़ज़ल का कोई निज़ाम है
मैं रही रदीफ सी, ज्यूं की त्यूं, तुम्हीं क़ाफि़ये से बदल गये
रदीफ़ एक ऐसा लफ़्ज़ है जो ग़ज़ल के मिसरों में क़ाफि़यों के साथ बार-बार आता है लेकिन उसका अर्थ और उसकी अहमियत विभिन्न शेरों में और भिन्न परिस्थितियों मंे क़ाफि़ये के साथ-साथ निरन्तर नये नये आयामों की ओर संकेत करती है. क़ाफि़ये के साथ रदीफ़ की भूमिका की विस्तृत चर्चा यहां उपयुक्त नहीं है, लेकिन क्या उनकी समूची शायरी इसी शेर और इस शीर्षक के अनुरूप है यह चर्चा का विषय अवश्य हो सकता है. उनके यहां ग़ज़ल कहने की रचनात्मक ललक है और उन्होंने इसे पूरी शिद्दत से निभाया है उनके अशआर इसकी गवाही देते हैं लेकिन बहरांे पर उनकी पकड़ और काव्योक्तियों को ग़़ज़ल का शेर बना लेने की महारत में उन्हें और परिश्रम करना चाहिए. इससे शायरी निखरती है. उदाहरण स्वरूप-
ये रात  बोले  देखो,  कैसी  मैं पहेली  हूं
दामन में लाखों तारे,  फिर भी मैं अकेली हूं
चमन को छोड़ दो, यादों के वीराने बुलाते हैं
फ़कीरों की सी जो फितरत, तो ग़मख़ाने रूलाते हंै
ग़ज़ल के प्रति उनका ग़हरा रुझान उनकी भावी शायरी के प्रति हमें आश्वस्त करता है, ग़ज़ल के चाहने वाले उनके इस संग्रह को हाथों-हाथ लेंगे यही कामना है.
रही रदीफ़ सी/सरोज व्यास/प्र.सं.2007/मूल्य 99 रु./प्र.गुरू काॅम.प्रिंट तिलक पुतला महल नागपुर महा.

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