रत्ना तुलसी की जीवनकथा
रत्ना तुलसी गीतकार घनश्याम योगी द्वारा रचित तुलसी रत्ना की जीवन कथा है जिसने आकारिक संक्षिप्तता के बावजूद प्रबंध काव्य का रूप ग्रहण किया है. कवि के अनुसार इसका ‘प्रेरणा स्त्रोत अमृतलाल नागर की बहुचर्चित कृति-मानस का हंस है. संपूर्ण कथानक 18 अध्यायों में विभाजित है किन्तु उनका नामकरण नहीं किया गया है. प्रारंभ में मंगलाचरण के अनुरूप बुद्धि के देवता गणेश, मां सरस्वती एवं भगवान शंकर की स्तुति है.कथानक का प्रारम्भ मुगलों के आक्रमण और साम्प्रदायिक दंगों की छाया में, तुलसी के जन्म, उनकी मां की मृत्यु और उनके बहिष्कार से हुआ है, द्वितीय अध्याय में सात वर्ष के अनाथ बालक के रूप में तुलसीदास के जीवन से जुड़ी घटनाओं, और किवदंतियों का विवरण है. उत्तरोत्तर अध्यायों में उनकी संवेदनशीलता और युवावस्था की झांकियां है. उनका प्रेम प्रसंग और विवाह की परिणति रत्ना की मृत्यु और तुलसी द्वारा अपने वचन के निर्वहन के रूप में होती है. कृति का अधिकांश घटनाओं का धारा प्रवाह वर्णन है फिर भी तुलसी की बाल्यावस्था में रोचकता है और रत्ना ी सहागरात के वर्णन तथा मृत्यु के प्रसंग में लेखनी सजीव हो उठी है. अयोध्या जाने के प्रसंग और राम जन्म भूमि-मस्जिद प्रसंग में कवि ने लेखकीय दायित्व का निर्वहन करते हुए सामाजिक समसरता बनाये रखने का प्रयास किया है.
संभवतः यह पहला प्रबंध काव्य है जिसमें तुलसी और रत्ना को समान महत्व दिया गया है. इसका दूसरा महत्व इसकी लोकभाषा है. जिस तरह तुलसीदास ने संस्कृत रामायण का लोक भाषा में अनुवाद कर रामचरित मानस को जन-जन में लोकप्रिय बनाया वैसी ही प्रयास कवि ने किया है. और मुद्रण या प्रूफ की तमाम त्रुटियां इसके महत्व को कम नहीं करती है. यों प्रबंध काव्य की कुछ मान्यताओं का निर्वहन हुआ है और कुछ का नहीं. कृति जन मानस को स्वीकार्य हो ऐसी कामना है.
रत्ना तुलसी की जीवनकथा/घनश्याम योगी/प्र.सं. 2008/संस्कृति प्रकाशन, योगी कुटीर वार्ड क्र. 4 करैरा जि. शिवपुरी म.प्र.
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