Wednesday 10 October 2012

मनमोहक ग़ज़लें


मनमोहक ग़ज़लें
-डाॅ.महेन्द्र अग्रवाल
सुरेन्द्र चतुर्वेद्वी गजल की शानदार जानदार शख्सियत हैं उनके पास गजल कहने की सलाहियत भी है और गजल का मुहावरा भी. ग़ज़ल की तमीज जैसे उनके खून में रची बसी है.‘‘कोई अहसास बच्चे की तरह’’ उनका पहला ग़ज़ल संग्रह है जो मेरी नजरों से गुजरा हैं.ये अलग बात है कि यह उनका छठा ग़ज़ल संग्रह हैं. इससे कब्ल उनके पांच ग़ज़ल संग्रह - दर्द बे-अंदाज़, वक़्त के खिलाफ, अंदा़जे बयां और, आसमा मेरा भी था, अंजाम ख़ुदा जाने, प्रकाशित हो चुके हेैं.
इस संग्रह से गुज़रते हुए मुझे लगा कि इन ग़ज़लों की खूबसूरती लफ्जों में बयां नहीं की जा सकतीं. गुलाब का फूल सुन्दर है, मनमोहक है, दर्शनीय है, आत्मा को सुकून देता है, और-और क्या कहेंगे ? एक सीमा के बाद लफ्ज आपका साथ छोड़ देते हैं. लेकिन अंदर ही अंदर कुछ ऐसा है जो उससे जोड़े रखता हैं. सुरेन्द्र चतुर्वेद्वी की गजलें भी इसी अहसास की तर्जुंमानी हैं. अपने बच्चे की तरह यह गजलें भी आत्मीय लगती हैं. अपनी प्रतीत होती हैं. इस बदलती दुनिया, बदलते रिश्तों के बीच जब वो ऐसे शेर कहते हैं -
मुझे महसूस होता है कि हूॅ मैं कर्बला में
मैं अपने भाइयों से जब वफायें मांगता हूॅ.
रूह में तब्दील हो जाता है मेरा ये बदन
जब किसी की याद में हद से गुज़र जाता हूॅ मैं.
उसे ढूंढ़ने की कोशिश भी अजब तजुर्बा लगी मुझे
छुपा हुआ था जैसे कोई तहखाना तहखानों में
लौट आए इस तरह उससे निभा कर दोस्ती
कै़द से लौटे कोई, जैसे जवानी काटकर.
हर सू महकती नर्गिसी, खुशबू की तरह हैं
घर में मेरे ये बेटियां उर्दू की तरह हैं.
यों कुछ गजलों में तकनीक की दृष्टि से प्रश्न चिन्ह खड़े किए जा सकते हैं. फिर भी शेरी जरूरत की बिना पर इन्हें नजर अंदाज किया जाना चाहिए. यह गजल संग्रह आम आदमी ही नहीं हर गजल कहने सुनने वालों के लिये पठनीय भी है और संग्रहणीय भी.
कोई एहसास बच्चे की तरह/सुरेन्द्र चतुर्वेद्वी/प्र.सं. 2007/मू. 80 रू./बोध प्रकाशन, ऐचार बिल्डिंग, सांगासेतु रोड़, सांगानेर जयपुर

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