Sunday 6 November 2011


दरिया डूब गया
दरिया डूब गया अनमोल शुक्ल अनमोल का पहला ग़ज़ल संग्रह है यद्यपि ग़ज़ल के शौकीन प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उनकी रचनाओं से पूर्व परिचित हैं, ग़ज़ल संग्रह में उनकी रचना धर्मिता पर वरिष्ठ ग़ज़लकार शकील बिजनोरी, राज गोपाल सिंह, जहीर कुरेशी, कमलेश भट्ट कमल, के अभिमत प्रारंभ में ही उनके क़द का अहसास करा देते हैं. सभी ने उनकी फ़नकारी की ताईद की है. प्रमाण स्वरूप उनके यह शेर देखें-
आसानी से मरता है शैतान कहां
रखता है वह तोते में अब जान कहां
निकट दर्पण के इतना आ गया हूं
मैं अपने बिम्ब से टकरा गया हूं
मेरी किस्मत में लिखा क्यों आपने ऐसा सफ़र
मोम की बैसाखियां और धूप में तपता सफ़र
निःसंदेह भीड़ में भी उनकी अपनी पहचान है क्यांेकि उनके पास शेर कहने का सलीका भी है और नये-नये मौजू तलाशने का हुनर भी. कहीं कहीं उन्होंने जोखिम उठाया है, खास कर गंगा जमुनी भाषा में कुछ शब्दों के साथ जैसे- नम्र, वायरस, त्रिज्या, वृत्त, आदि लेकिन उनका संुदर सोच उनके शेरों को सदैव नयी आभा देता है. जैसे-
हे प्रभु आंधी कोई सारे मुखोटे ले उड़े
जिससे हर इक आदमी फिर आदमी लगने लगे
ईश्वर उनकी यह कामना पूरी करे, संग्रह पठनीय है.
दरिया डूब गया/अनमोल शुक्ल अनमोल/पृ.सं.2009/मू.130रू/अविचल प्रकाशन, विजनौर उ.प्र.BY-MAHENDRA AGRWAL

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