Sunday 6 November 2011


मुस्लिम कवियों का योगदान.
आलोच्य कृति का शीर्षक है सामाजिक समरसता में मुसलमान हिन्दी कवियों का योगदान. अर्थात वह मुसलिम कवि जो हिन्दी भाषी है या जिन्होंने हिन्दी भाषा में काव्य सृजन किया है, उनके द्वारा हिन्दी मुस्लिम जन समूह में तात्कालिक परिस्थतियों की विषमता के वाबजूद साम्प्रदायिक एकता का प्रयास,उसका प्रभाव व ऐतिहासिक  महत्व को रेखांकित करती हुई कृति में इन कवियों को काल के आधार पर तीन भागों में बांटा है, आदिकालीन या प्रारंभिक, मध्यकालीन एवं आधुनिक काल के मुसलमान हिन्दी कवियों की पृथक-पृथक किन्तु विस्तृत व सार्थक चर्चा उदाहरण सहित रचनाकार ने की है. वर्तमान परिस्थितियों में यह कृति और अधिक प्रासंगिक बन पड़ी है अपने महत्व की दृष्टि से उपयोगी भी. इस तरह की कृतियां और उनमें व्याप्त संदेश सामान्य जन तक भी पहुंचना चाहिए तभी लेखक का श्रम सफल और सार्थक होता है. विषय से सम्बद्ध ज्ञानार्जन की दृष्टि से यह कृति अनुपम है, इसमें इस्लाम और हिन्दू धर्म के उद्भव, विकास और स्वरूप शीर्षक से जो अध्याय संकलित हैं वह आम पाठक के लिए रोचक भी हैं और ज्ञानवर्धक भी. शोधकार्य के विषय से जुड़े हुए अनेक तथ्यों के साथ लेखक की  विवेचनात्मक क्षमता का परिचय देते हुए उनके निष्कर्ष भी अत्यंत सारगर्भित हैं. शोधकार्य   का उनका उद्देश्य भी महत्वपूर्ण है जो राष्ट्रीय चिंता से आकुल होकर उन्हें प्रेरित करता है और वर्तमान विषेले वातावरण में सामाजिक समरसता के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराने जैसी भूमिका का निर्वहन करता है.  लेखक ने ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं जहां मुिस्लम कवियों ने रामचरित्र मानस, हनुमान चालीसा आदि रचनाओं के महत्व को समझते हुए उनका उर्दू अनुवाद किया है और उन्हें जन उपयोगी मानकर मुसलमानों तक में उन्हें पहुंचाने का कार्य किया है. सुप्रसिद्ध समालोचक डॉ.परशुराम विरही के यह वक्तत्व इस कृति के संबंध में सनद् की तरह हैं और उनके बाद किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं रहती.
1- एकता और समरसता की बात की जितनी सरस सम्प्रेषणीयता कवि-कथन मंे होती है उतनी दार्शनिक विवेचक और विज्ञानिक सिद्धांत सूत्र में नहीं होती.
2- शासकों की बर्बरता से पीड़ित जनता में समरसता कौन पैदा करता. बहुसंख्यक समाज की खिन्नता को मुसलमान, संतो और कवियों ने समझा था.
3- आज पूरे विश्व का सामाजिक वातावरण ज़िहादी आतंकवाद से आशंकित है ऐसे समय में इस प्रकार के ग्रंथों की साहित्यिक और सामाजिक उपयोगिता को सहज ही समझा जा सकता है.
सामाजिक समरसता में मुसलमान हिन्दी कवियों का योगदान/डॉ.लखनलाल खरे/पृ.सं.2009/मूल्य 200 रू./रजनी प्रकाशन 5/288 गली नं. 5 पश्चिम कांति नगर दिल्ली    BY-DR.MAHENDRA AGRWAL

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