Monday 14 November 2011

कैकेयी-एक पुनर्विचार


कैकेयी-एक पुनर्विचार                                                  -डॉ. महेन्द्र अग्रवाल
            सीता राम महर्षि द्वारा रचित उपन्यास कैकेयी बाल्मीकि रामायण पर आंशिक रूप से आधारित होते हुए भी लेखक की कल्पनाओं से बुना गया है तथापि वह पढ़ते सयम वास्तविक प्रतीत होता है. यह लेखक की रचनात्मक प्रतिभा की अद्भुत सफलता है. यद्यपि इससे पूर्व कैकेयी के चरित्र पर केन्द्रित कल्याणी कैकेयीशीर्षक से डॉ. राधेश्याम द्विवेदी का खण्डकाव्य प्रकाशित हुआ है और उनसे पूर्व भी एक अन्य खण्डकाव्य प्रकाशित हुआ था किन्तु यह दोनों काव्य रूप हैं गद्यरूप में लेखक का यह अनूठा प्रयास है. लेखक की कल्पना शक्ति ने जिस तरह से पूरे उपन्यास का ताना बुना है वह सराहनीय है. तात्कालिक परिस्थितियों के वर्णन से लेकर कैकेयी सहित कथानक से जुड़े हुए सभी पात्रों की मनोस्थिति की समयानुसार यथोचित विवेचना पाठको के  मनोमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती है. यह कृति कैकेयी के प्रति जनमानस की धारणाओं को बदलने की सामर्थ रखती है और यही लेखक के रचनात्मक प्रयास की सफलता है. कहीं कहीं कैकेयी के प्रति उनका अतिरिक्त मोह झलकता है. लेकिन यह स्वभाविक है क्योंकि लेखक जिस पात्र को लेकर पूरा उपन्यास रच रहा है उसके चरित्र के प्रति अतिरिक्त सावधानी बरतना भी उसका दायित्व है. उपन्यास में वैदिक चिंतन और परंपरागत हिन्दू दर्शन का प्रभाव मुखर है. वर्तमान से सामंजस्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी कहीं कहीं खलती है. राम के चरित्र को मानवीय रूप देकर जन मानस को प्रेरित करने की जगह सभी पात्रों के माध्यम से उन्हें सर्वत्र ईश्वरीय अवतार का ही रूप दिया गया है. सारांशतः उपन्यास, पठनीय और रोचक तो है ही कैकेयी के चरित्र के प्रति भी  जन मानस से पुनर्विचार की मांग करता है.
कैकेयी/सीताराम महर्षि/द्वितीय सं. 2010/मू.200रु./शिवप्रसाद मोहनलाल चैरिटेबल ट्रस्ट, गुवाहाटी, असम

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