Wednesday 2 November 2011

सतरंगी सप्तसिंधु


सतरंगी सप्तसिंधु
संयोग साहित्य के कुशल सम्पादक और वरिष्ठ साहित्कार मुरलीधर पाण्डेय का नाम सहित्य जगत के लिये परिचय का मोहताज नहीं है. सप्त सिन्धु उनकी पांचवी पुस्तक है, जिसमें कविता, गीत, लोक गीत,बालगीत, ग़़ज़ल, दोहे एवं मुक्तक आदि सतरंगी रचनाओं के श्रेष्ठ कवि रूप में वह उपस्थित हुए हैं, इसमें सौ वर्षीया वृद्धा की पीड़ा भी है और आयु की परिभाषा भी. कहीं कही मन की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण हैं. यद्यपि संकलित ग़ज़लें हिन्दी गीतिका की तरह हैं किन्तु कुछ ग़ज़लों में उर्दू लबो लहज़े की झलक भी मिलती है. 
दोहों में आदर्श और उपदेश की प्रधानता है किन्तु व्यंग्य की धार भी अधिकांश दोहे में सर चढ़कर बोलती है. अभिव्यक्ति में नवीनता है- बिन मांगे मत दीजिए अपना कभी सुझाव
बिना भूख पचता नहीं घी का बना पुलाव
नवीनता की आकांक्षा में कवि ने मुक्तकों को भी नये सिरे से गढ़ा है. 
सप्त सिंधु काव्य संग्रह/मुरलीधर पाण्डेय/प्र.सं.मई 2011/मू. 100 रू/संयोग प्रकाशन 9ए चिंतामणि आर.एन.पी.पार्क भईंदर जिला ठाणे महाराष्ट्र





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