Monday 14 November 2011

कहना जरूरी है


                              कहना जरूरी है          --डॉ. महेन्द्र अग्रवाल
             
            कहना जरूरी है, हरिवल्लभ श्रीवास्तव के ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक है. जितनी सहजता सरलता कवि के जीवन में है उतनी ही सहजता और सरलता उनकी स्वीकारोक्ति और उनकी ग़ज़लों में है.उनके वक्तव्यों में ये तथ्य शामिल  है कीमुझे उर्दू भाषा का कतई ज्ञान नहीं है, मैं उर्दू ग़ज़लों के नियमों से पूर्णतः अनभिज्ञ हूं. इस कारण उर्दू ग़ज़ल के बहर, रदीफ, क़ाफिया, मतला या मक़्ता की नियमावली मुझे मालूम नहीं है.लेकिन वर्तमान में लिखी जा  रही ग़ज़लों पर उनकी यह चिंता वाजिब है और ग़ज़ल के संबंध में उनकी जानकारी का पर्याप्त प्रमाण है कि आज ग़ज़लें कैसे और किस तरह लिखी जा रही हैं.
                        सौ दिन में सौ ग़ज़लें यार
                        मुश्किल हैं कि लिख लें यार 
                        उस पर कुछ शंका सी है
                        मार रहा है नकलें यार
 अपने समय के मानव और समाज की बिगड़ती तस्वीर के प्रति गहन चिंता उनकी रचनाओं में उजागर हुई है.
                        तुमने ऐसा क्या रखा है अपने पास खजानों में
                        आग लगाने फिरते देखे रिश्तेदार मकानों में
यह समयगत सच्चाई भी है और अपने समय के रिश्तेदारों का यथार्थ भी.मानव जाति और सभ्यता के विकास के प्रति कवि की चिंता और भावी पीढ़ियों से मोहब्बत का जजबा उनके शेरों से झलकता है.
                        बात छोटी है मगर कहना जरूरी है
                        हर किसी को हदों में रहना जरूरी है
                        ज़िद पर अड़े रहना सदा अच्छा नहीं होता
                        बच्चे बड़े हो जायें तब झुकना जरूरी है
                        ज़िन्दगी में उसूलों पर चलना जरूरी है
                        गलत कामों से बचना जरूरी है
            वस्तुतः उनकी शायरी पूरी दुनिया से प्रेम करने वाली एक भले और भोले कवि की शायरी है. जिसमें सादगी भी है और सच्चाई भी.
                        न तुम हमारे हो सके न तुम हमारे हो सके
                        नफ़रतों की वजह से हम चैन से न सो सके
और ऐसी शायरी में कविता में मीन मेख निकालना हमारी तंगदिली होगी.
कहना जरूरी है/हरिवल्लभ श्रीवास्तव/प्र.सं.2009/मू. 60रु./वाणी प्रकाशन प्रा.लि. कांदीवली पू. मुम्बई

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